अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
पांच दशकों से मना रहे
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
दिखावा मात्र है ये
ईमानदार जवाब
अब तक न मिल पायी समानता।
डार्विन का सिद्धांत
नेचरल सेलेक्शन
शक्तिशाली ही हावी रहता
दूसरा आदिकाल से चला आ रहा
नारियों का दासी स्वभाव
महिला सौभाग्यवती, पुरूष चिरंजीवी
दूतों नहाओ पूतों फलो
शादीशुदा होने के तमाम चिन्ह महिला पहने
पुरूष पर कोई बाध्यता नही
पितृसत्तात्मक सोंच का परिणाम है ये।
भेदभाव पूरी दुनियां मे हर धर्म मे है
महिला को ही चुड़ैल कहा जाता
ये आदम जमाने की बातें नही
तकनीकी और विज्ञान की 21वीं सदी की हैं
नौकरी और काम करने की स्वतंत्रता मिल गई
पर ये समानता नही
और बड़ी असमानता है
घर और बच्चों की जिम्मेदारी भी इन्ही की है।
बड़े-बड़े दावे, उपलब्धियां गिनाई जाती
अब किसी क्षेत्र मे पीछे नही कहा जाता
किन्तु क्या ऐसा है ?
पुरूषों की तुलना मे नगण्य
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर
फटा ढोल पीटकर
पूरे वर्ष की समानता की इतिश्री कर दी जाती
महिलाओं को उनका संवैधानिक हक
देने और दिलाने के लिए
पुरूषों को आगे आना होगा।
स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर