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21 Mar 2022 · 1 min read

अंडे दिए हैं शायद दड़बों मे बटेरों ने

दायरा समेट लिया चुपके से सवेरों ने
कदम रख दिया हैं लगता है अंधेरों ने

हमारे जाल मे हलचल काहे को होगी
दरिया खंगाल लिया कब का मछेरों ने

सांप ही सांप हैं आंगन मे चारो तरफ
अंडे दिये हैं शायद दड़बों मे बटेरों ने

ये लाशें इस बात की दस्तीक करती हैं
खामोशी से पकड़ी थी आग बसेरों ने

कैसे सुनते वो चीख पुकार ऐ “आलम”
कानों मे उंगलियाँ दे रखी थीं बहरों ने
मारूफ आलम

1 Like · 201 Views
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