अंजाना साथी
आज एहसास हुआ, एक अनजाने साथी का, जो पल पल रहता रहा है साथ हमारे ।
हम उसे भूल भी जाएं मगर, भूलता नहीं वो साथ हमारा।
जैसे छोड़ देते हैं हम कांटों को, पर वो छोड़ते नहीं दामन हमारा।
हम जाएं दूर उससे कितना भी, मगर दूर जाता नहीं वो हमारे ।
न जाने कब उससे मुलाकात हो गई ,एक पल में मैं इस जिंदगी से बेगानी हो गई।
उससे मुलाकात करके पता चला, वो मुझे बरसों से जानती है,
मैं ही उससे अनजान थी ,मगर वो मुझे बहुत चाहती है।
वो बोली तुम्हें लेने आई हूं ,जन्नत की सैर कराने आई हूँ।
वो कोई और नहीं मेरी मौत थी , मगर जिंदगी से बहुत दूर थी।