*अंग गौरी तेरे जैसे गहने हों भारी*
अंग गौरी तेरे जैसे गहने हों भारी
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अंग गौरी तेरे जैसे गहने हों भारी,
निहारूँ नैन नशीले मत जाए मारी।
यौवन का जादू सिर चढ़ कर बोले,
पाऊँ न चैन कहीं हो कर बलिहारी।
काली जुल्फें नागिन सी लहराती,
कंचन कमरिया बलखाती कुंवारी।
लटू सी चमकती मृगनयनी ऑंखें,
हो जाएं रौशन लंबी रातें अँधियारी।
कोयल सी बोली मधुर रस घोलती,
चढ़ जाए तन-मन वो इश्क ख़ुमारी।
सोनजूही लता सी चढ़ती ही जाती,
तरुणाई से लथपथ सारी की सारी।
मनसीरत पंछी पिंजरे में बंद कैदी,
कोई आन छुड़ाए होऊँ मै आभारी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)