अंगुलिया
शरीर के शिखर को
जब मिलता है अंगुलियां का
सहज स्पर्श ,
खिल उठता हर रोम
तरोताजा होकर ,
आगे बढ़कर जब कस कर
मिलती है यही अंगुलिया
अन्य की अंगुलियो से गले ,
जन्मते है खुशिया के पल,
सवार होती है अंगूठी पीठ पर
अंगुली को लपेट अपनी बांहो मे ,
बढा लेती है अपनी सुंदरता भी
और बन जाती है धारण करने वाले का रक्षा कवच भी,
झुकती है करबद्ध हो कर विनय के भाव से
तो शीतल कर जाती है तप्त क्रुद्ध हृदय को,
नन्ही अंगुली जब थाम लेती है अपने बलिष्ठ को
पा जाती है दुनिया का सबसे सुरक्षित आसरा ,
मचलती है लयबद्ध होकर जब
तबले के माथे पर यह अंगुलीया ,
थिरकने को कर देती है मजबूर ,
हर एक अँगुली का है अलग रूप
पर जुड कर जब बनाती है नमन की एक मुद्रा
तो जोड लेती है अपने से अलग हिस्सो को भी,
अनेकता मे एकता का संदेश देता एक स्वरूप
संदीप पांडे”शिष्य “अजमेर