अँधेरी गुफाओं में चलो, रौशनी की एक लकीर तो दिखी,
अँधेरी गुफाओं में चलो, रोशनी की एक लकीर तो दिखी,
अमन करता हैं बगावत भी, उसकी ऐसी तासीर तो दिखी .
करिए कोशिश देखिये, उखड़ सकते हैं पाँव अंगद के भी,
देर से ही सही पर , ऐसी कोई चलो नज़ीर तो दिखी ॥
देखना, घाव नासूर बन जाते हैं पुराने,
संभलना, फर्क करते हैं, अपने-बेगाने,
चलो देर से ही सही आँखों में किसी के
एक सच्चे ख्वाब की तस्वीर तो दिखी ॥
[c]@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”