अँजुरी दे…
अँजुरी दे अँजुरी में प्रिय
चिर बंधन बंध जाती हूँ
चूर्ण मुष्टि सिंदूर सजा
रोम रोम महकाती हूँ
पारस सा स्पर्श पिया
मैं कुंदन कहलाती हूँ
स्पंदित होता कण कण
जो आलिंगन समाती हूँ
प्रेमसुधा की बरखा में
तन मन भीग लजाती हूँ
अधरों पर है हया टिकी
नयनों से मुस्काती हूँ
प्रेम लता सुमन खिले
अंग अंग सजाती हूँ
सुरभित उर का आँगन
मधु कोष छलकाती हूँ
झंकृत प्राणों के तार
तुम को गुनगुनाती हूँ
संजीवनी सा साथ तेरा
प्रति पग संग उठाती हूँ
खोकर तुझमें सुधियाँ
निज को निज पाती हूँ
रेखांकन।रेखा Ph