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15 Oct 2022 · 1 min read

✍️रूह के एहसास…

मैं गहरा दर्द हूँ
आँखों में भरकर
भी आप मुझे
गिरा सकते हो

मैं चोटिल लफ्ज़ हूँ
जुबाँ से बोलकर
भी आप मुझे
महसूस करा सकते हो

गर लफ्ज़ अश्क़
बने तो क्या…?
और अश्क़ लफ्ज़
बने तो क्या…?
मेरे जख्मी रूह के
एहसास ग़मो के समंदर
में भी तैरना जानते है…
…………………………………………//
✍️’अशांत’ शेखर
15/10/2022

3 Likes · 4 Comments · 91 Views
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