✍️मेरी वो कमी छुपा लेना
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रूह में कुछ बाकी रही मेरी वो कमी छुपा लेना
थोड़ी आँखों में अश्क़ की है तेरे नमी छुपा लेना
मैंने तराशी है तूझ में वो खूबी मेंरा वो हुनर था
तुम भी मुझ में जरासा अपना कतरा जोड़ लेना
लरजती है निगाहों में अब भी अरमानो की राहे
तंग गलियों से निकले है कदम तुम रोक ना लेना
उठाकर चलता हूँ अपने ख़्वाबो का बढ़ता बोझ
कुछ टूट भी गये है बाकी बचे आप संभाल लेना
दरिया जब भी समंदर से मिला फिर नही मिला
बड़े किरदारो से छोटी शख़्सियत तुम बचा लेना
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©✍️’अशांत’ शेखर
18/09/2022