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2 Feb 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

बदहवासी में दरख्तों को गिराने वालो
आबे दर्या को यूँ ज़हरीला बनाने वालो
कोई हद भी तो मुकर्रर हो हवस की आखिर
रोज़ आँखों में नए ख्वाब सजाने वालो
तुम पे कुदरत का यकीनन ही सितम टूटेगा
वक़्त रहते जो नहीं चेते ज़माने वालो
हश्र क्या होगा ज़रा सोचो , नई पीढ़ी का
उनकी जन्नत को जहन्नम सा बनाने वालो
तुम ने ईसा को भी सूली पे चढ़ा डाला था
तुम ही सुकरात के कातिल हो ज़माने वालो

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