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7 Aug 2016 · 1 min read

फ़लक़ से मिस्ले परिंदा,,

फ़लक से मिस्ले परिंदा उतर भी सकता है।
तू जिस अदा से उडा था उतर भी सकता है।।

मेरी कमान में इक तीर बच गया है,अभी।
तुम्हारी जीत का झंडा उतर भी सकता है।।

में सब के सामने सच्चाई खोल दूँ लेकिन।
हुजुर आप का चेहरा उतर भी सकता है।।

यही पे आ के दुआएं कुबूल होतीं हैं,
यहीं पे शेर ग़ज़ल का उतर भी सकता है,

——-√अशफ़ाक़ रशीद“

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