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18 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल- नज़ारे बड़े अलहदा हो चले हैं

ग़ज़ल- नज़ारे बड़े अलहदा हो चले हैं
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
नज़ारे बड़े अलहदा हो चले हैं
कि जबसे वे हमसे खफा हो चले हैं

हैं दिल में छुपे यूँ दिखाई न देते
मुझे लग रहा वे खुदा हो चले हैँ

न देखो इधर तुम कहीं और जाओ
कि हम तो कोई बुलबुला हो चले हैं

निखर से गये हो मुझे भूल कर तुम
तुम्हारे लिए क्या से क्या हो चले हैं

मुझे जान कहने से थकते नहीं थे
वही जानकर क्यों जुदा हो चले हैं

हूँ बीमार ‘आकाश’ आये नहीं वे
हमारे लिए जो दवा हो चले हैं

– आकाश महेशपुरी

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