हम स्वार्थी मनुष्य

हम सब मानव हैं स्वार्थी
अपने गरज हेतु हम नर
किसी नि:स्वार्थी को करते
मिलजुल कर विकल हम
हम मनुजो से लाख गुना
होती अच्छी निस्वार्थी प्रकृति
यह बिना किसी धारणा के
देते हैं जीवनदान भुवन में।
यह प्राकृति अगर हम जैसे
करने लगी तो क्या होगा ?
अनुमान भी लगाना है रेख़्ता
पानी ,पर्वत, पेड़ -पौधे झरना
ये सब करेगी हमसे कुशाग्रता
तो अनुमान भी लगा न सकते
हमसबों को प्रयोजन बनकर
रहना चाहिए इस वसुंधरा में।
यह दुनिया बड़ी मतलबी
दिनों दिनों होते जा रहे है
आज कोई नर किसी की
मदद भी करता तो निज
स्वार्थ,लाभ देखकर करता
अक्सर मनुज इस भव में
कभी विस्मरणीय बनने की
उद्यम न ही करें वही अच्छा।
लेखक:- अमरेश कुमार वर्मा