स्वार्थ सिद्धि उन्मुक्त
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/07c20f0b0c62fecd5934a0130fdc2604_5054fe97a951ad3c9cd8f110e5aef895_600.jpg)
पिंजरे में बंद पक्षी की
तरह व्याकुल लोकतंत्र
विधानों का मखौल उड़ा
रहे लोकतंत्र के ही स्तंभ
जन हित के नाम पे बने हैं
जितने भी नियम कानून
वो अब दे नहीं पा रहे देश
की आम जनता को सुकून
सरकारी संस्थानों की शैली
से जनहित का बोध विलुप्त
मानवीय संवेदना का भाव
गुम, स्वार्थ सिद्धि उन्मुक्त
हे ईश्वर मेरे देश के नेताओं
को दो सद्बुद्धि का खास दान
स्वार्थ लोलुपता में बिसराएं
नहीं वो जनता का कल्याण