“स्वार्थी रिश्ते”
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जो दिल के रिश्ते होते हैं ,
उसमे सहूलियत दिखती है ।
जो दिमाग के रिश्ते होते हैं ,
उसमे चालाकियत दिखती है।
साजिश रचने वाले ,कोई गैर नही,
जो खून के रिश्तों के बीच रची जा रही है।
खूबसूरती से कड़वापन मीठे बोल बोलते है,
अपने खोल में यह जहर घोल लेते हैं।
रिशों में अब वो स्याही नही,पेंसिल से रिश्ते हैं,
जिन्हें जब चाहे रबर से मिटा सकते हैं।
साथ रहना है जिनके मुझे,
रिश्ता क्या है कहते दिखे।
गैरों की बात अलग है,
रूप अपनो के बदलते दिखे।
चाहते थे तेरे मेरे रंग एक हो,
दुख हैं तेरे रंग फरेबी दिखे।
है वक्त सही तो ,सब कुछ सही,
वक्त के साथ फैसले बदलते दिखे।
बेगाने होते अपने ,अपनो को अजनबी देखा,
बेगानो के हाथों में मरहम,अपनो के हाथ खंजर देखा।
मत पूंछ इन आँखों ने क्या क्या मंजर देखा,
अपनो को ही ,खुद बेखबर होते देखा।
लोग कहते हैं मैं बदल गई हूँ,
सही में अब मैं रिश्तों को समझ गई हूँ।
कल तक नदी थी,मैं बह रही थी,
आज मैं सागर में सिमट गई हूँ।
रिश्तों की मैली चादर,चली सरक कर हटने,
उठा नाम बटवारे का तो,लगा ही रिश्ते बटने।
अंगुली पकड़कर हाथ चलाया ,
घर द्वारे और अँगने,
टूटी माला बिखरे सब अपने,
बड़े दर्द के साथ झुलस गए सब सपने।
रिश्तो में अब पड़ी दरारे ,लगा कलेजा फटने,
रिश्ते नाते हुए पराये जो कल तक थे अपने।
जिसकी करते थे दुआ हजारों में,
वही रिश्तों को बेंच दिए स्वार्थ के बाजारो में।
पाकिजगी रिश्तो में रहे,दूषित न कीजिये,
रूह से बनते हैं रिश्ते ,निभाया भी कीजिये।
रिश्तो को सीमाओं में बांधा नही करते,
झुठी परिभाषाओ में ढाला नही करते।
हकदार बदल दिए जाते हैं, किरदार बदल जाते हैं,
मन्नत ना पूरी हो तो भगवान बदल दिए जाते हैं।
गलत का विरोध,खुलकर कीजिये,
राजनीति हो या हो समाज,
इतिहास कुछ करने वालों का लिखा जाता है आज।
कुछ रिश्तों में हम जीते हैं,
कुछ रिश्ते हमसे जीते हैं।
जिंदगी किसको मिली है, सदा के लिए,
मर जाने पर क्यों आओगे विदा के लिए।
स्वार्थ के रिश्ते ना बनाओ दोस्तों,
दिल के ही रिश्ते बनाओ दोस्तो।
जब ये एक बार टूट जाता है,
फिर चाहे कितना जोड़ो, कभी न जुड़ पाता है ।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज