सिर्फ अपना उत्थान
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मेरी पहली कमाई कब
ये राह देख रहे असंख्य
संवेदनहीन हो चुके हैं अब
लोकतंत्र के तीनों ही स्तंभ
इनकी चिंता में शुमार है
सिर्फ अपना ही उत्थान
ऐसे में देश के करोड़ों युवा
रोजी के लिए हैं हलकान
सरकार के नुमाइंदों को बस
कुर्सी और धनार्जन की फ़िक्र
संसद,विधानसभाओं में होता
नहीं युवाओं की पीड़ा का जिक्र
हे ईश्वर मेरे देश के युवाओं
को दीजै सन्मति का उपहार
अपने अधिकारों को पहचान
कर चुनें वो उपयुक्त सरकार