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18 Oct 2022 · 1 min read

समाज का दर्पण और मानव की सोच

दर्पण में अपने सौंदर्य को देख
स्वयं से प्रश्न पूछती
क्या मैं भली लगती हूं
लज्जा का आंचल पटककर
समाज से पूछती हूं
नये नये परिधान पहनकर
अपने पिया को मनाने को
मै जोगन सी बन जाती हूं
विस्मित होकर मैं अपने से प्रश्न पूछती हूं
समाज का बंधन बंधने के लिए है
स्वतंत्र विचरण को मानती हूं
घर की चार दीवारी मुझे बांधती
मैं इस बंधन से मुक्ति चाहती हूं
उडूंगी समाज के दायरे से हटकर
निर्भयता से समाज के बंधन काटूंगी
जो नारी को अबला बना रहा है
अब नारी अबला नहीं सबला बनूंगी

नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
पता-मोहल्ला जाब्तागंज, नजीबाबाद, जिला बिजनौर, यूपी
मोबाइल नंबर 9927140483

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 76 Views
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