सबतै बढिया खेलणा
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मेरी कविता का हरियाणवी अनुवाद
अनुवादक -पवन गहलोत
सबतै बढिया खेलणा
बाळकपण म्हं
मेरे ढब्बी
माड़ी सी बी
नोक-झोंक होण पै
मेरा जी दुखाण तई
तोड़ दिया करै थे
मेरे माट्टी के खेलणे
फेर आज-काल के ढब्बी
होत्ते ए
थोड़ी-सी नोक-झोंक
तोड़ दे सैं, दिल नै ए
दीक्खै आज-काल
यो ए सै
सबतै बढिया खेलणा।
– विनोद सिल्ला
(अनुवाद – पवन गहलोत )