*** सफलता की चाह में……! ***
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/e08e1127b6999b09ebf4d99a8f4374f4_3affd028f4b2c37ebbae1a566b615b16_600.jpg)
“” सुबह के उजाले में…
कुछ ख्वाब जग रहे थे…!
चल पड़ा अकेले, साकार करने उसे…
कदम, कुछ लड़खड़ाते बिखर रहे थे…!
रास्ते पर अकेला सफ़र…
कुछ कठिन और असंभव लग रहे थे…!
हवाओं के झोंके…
कुछ यूं ही मन को सता रहे थे…!
चाल, कुछ मद्धम-मद्धम सा…
अकेले-अकेले ये राह…,
खाली-खाली लग रहे थे…!
सफ़र में, न कहीं सहारे की आहट…
मात्र अकेले पन की सन्नाटा…,
असफलता पांव पसार…
मेरे चाल को, अल्प-विराम लगा रहे थे…!
नयन नीर से भरे…
और सफ़र ठहरने को, कुछ कह रहे थे…!
मगर जिंदगी के रंगों की मृगतृष्णा भी…
पग-पग साथ चल रहे थे…!
इधर डगमगाते पांव…
मन को, कुछ अस्थिर कर रहे थे…!
और बादलों की छांव…
आराम करने की लालसा दे रहे थे…!
मगर सफलता की चाह में…
ये कदम, ये पांव…,
अथक-अनवरत चल रहे थे…!
शायद…! सफलता की….
कुछ मजबूत नींव रख रहे थे…! “”
*************∆∆∆*************