“सत्य” युग का आइना है, इसमें वीभत्स चेहरे खुद को नहीं देखते
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“सत्य” युग का आइना है, इसमें वीभत्स चेहरे खुद को नहीं देखते है। हर युग में सत्य अपना स्वरूप बदलता है जैसे, सतयुग-समर्पितसत्य, त्रेता- मर्यादित सत्य, द्वापर-परिभासित्सत्य और कलियुग में प्रायोजित सत्य। क्यों
जय श्री सीता राम