सच

सच –
अशोक को नई नई नौकरी मिली थी ना तो कोई कार्यालय मिला था ना ही सहयोगी कर्मचारियों का समूह मिला था सिर्फ एक कागज का टुकड़ा जिस पर लिखा था आपकी नियुक्ति प्रशिक्षु विकास अधिकारी पद पर की जाती है एवं पिपराइच एव खोराबार विकास खण्ड में भारतीय जीवन बीमा निगम के लिए व्यवसायिक बृद्धि बीमाधारक सेवा एव जीवन बीमा निगम के बिस्तार एव साख के लिए उत्तर दाई होंगे ।
अशोक को लगा कैसी नौकरी है उंसे समझ मे नही आ रहा था कि वह कैसे किस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेगा वह कभी गोरखपुर नही आया था गोरखपुर विजय चौराहे पर आनंद भवन में सेठ द्वारिका दास के भवन में भारतीय जीवन बीमा निगम का वह कार्यालय था जिससे अशोक सम्बद्ध था ।
अशोक बीस सितंबर-1983 को अपने आदर्श जीवन मार्ग पथ प्रदर्शक बाबा से आशिर्बाद लेकर देवरिया इंडस्ट्रियल स्टेट से चला बस से गोरखपुर रिक्से से विजय चौराहा आनंद भवन पहुंचा जहाँ उसकी मुलाकात आर के त्रिपाठी जो कार्यालय सेवा ओ एस विभाग में से हुई कार्यरत थे उन्होंने मुझसे सामान्य परिचय जानने के बाद मुझे बताया आप शाखा प्रबधक जी से मिल कर आवश्यक निर्देश प्राप्त कर ले।
मैं सीधे शाखा प्रबंधक चैंबर में अनुमति लेकर पहुंचा ज्यो ही दाखिल हुआ शाखा प्रबंधक कि कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने बहुत इज्जत के साथ उठकर मेरे अभिवादन को स्वीकार करते हुए अपना परिचय दिया मैं श्री प्रकाश आइए बैठिये आप ही जैसे नौजवानों के ऊपर भरतीय जीवन बीमा निगम का भविष्य है ।
श्री प्रकाश जी का व्यवहार देखकर ऐसा महसूस हुआ जैसे अशोक जीवन मे सही जगह सही संस्था में अपनी सेवाएं देने जा रहा है श्री प्रकाश जी घंटो अपने विषय मे बताते रहे वाराणसी के रहने वाले है ,उनका छोटा भाई मुंम्बई एयरपोर्ट पर कस्टम का सर्वोच्च अधिकारी है मेरी एक मात्र पुत्री निवेदिता बहुत शरारती नटखट है आदि आदि फिर उन्होंने कहा कि अशोक आप जाकर अपना क्षेत्र भी देख लीजिए जहाँ आपको कार्य करना है।
अशोक सीधे शाखा प्रबंधक चेंबर से निकला छोटे भाई महिपाल को साथ लेकर पिपराइच के लिए निकल पड़ा साधन कि तलाश करते करते बहुत देर हो गई बहुत देर बाद एक ईंटो से लदा ट्रक मिला जिसने ईंटो पर बैठा लिया करीब पैंतालीस मिनटों में पिपराइच पहुंच गए।
समस्या यह थी कि कहां जाए जाए कि कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद पुनः लौटने के लिये बस स्टेशन से बस मिल गई और देवरिया लौट आये ।
दूसरे दिन आराम करने के बाद तीसरे दिन अशोक उठा और अकेले पिपराइच के लिए चल दिया पिपराइच पहुँचने के बाद वहां बनवारीलाल अग्रवाल जो भारतीय जीवन बीमा निगम से संबंधित थे के कपड़े कि दुकान पर पहुंचा बनवारीलाल अग्रवाल निगम के बहुत प्रतिष्टित अध्यक्ष क्लब सदस्य अभिकर्ता थे वहाँ कुछ देर बैठने के बाद अशोक आस पास के बाजारों के सर्वेक्षण एव अभिकर्ताओं कि खोज के लिये निगल पड़ा।
मुलाकात हुई एक नौजवान से जिसका नाम धीरेंद्र था बोला आप आगया जाईये और सुमंत मणि उपाध्याय के परिवार में किसी को भी भारतीय जीवन बीमा निगम का एजेंट बना दीजिये आपको इतना बीमा मिलेगा की आपका विभाग संभाल नही पायेगा अशोक ने पूछा क्या खास बात है उसने बताना शुरू किया सुमंत मणि उपाध्याय बहुत बड़े ज्योतिषाचार्य थे जब आगया से अपने घोड़े से पिपराइच के लिए निकलते रास्ते भर उनके सम्मान् में क्षेत्र का जनमानस नतमस्तक हो जाता हमने पूछा ऐसी क्या खास बात थी सुमंत मणि उपाध्याय में उसने बताया कि एक तो ज्योतिष का उनसे बड़ा जानकार पूरे भारत संभवतः विश्व मे कोई नही है उन्होंने एक बहुत खूबसूरत सफेद रंग के नगवाली अंगूठी पहन रखी थी और एलानिया बोल रखा था जिस दिन जिस प्रहर अंगूठी का नग काला पड़ जायेगा उसी समय उनकी मृत्यु हो जाएगी और हुआ भी यही।
अशोक कि जिज्ञासा इस बात में बढ़ गयी कि पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय कि मृत्यु कैसे हुई तब धीरेंद्र ने बताया कि एक दिन पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय खेत से गन्ना कटवा कर लगभग घबड़ाये हुये भागे भागे घर को आये क्योकि उनके अंगूठी के नग का रंग काला पड़ चुका था उनको लगा कि ऐसी कौन सी अप्रत्याशित घटना घटने वाली है जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी उनको कोई बीमारी नही है वो पूर्णतः स्वस्थ है फिर कैसे अंगूठी का नग काला पड़ गया ज्यो ही वह अपने दरवाजे पहुंचे और दरवाजे के सामने कुर्सी पर बैठे घर के पहली मंजिल से उनकी ही लाइसेंसी बंदूक से उनके बेटे ने उन्हें गोली मार दी जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी ।
अब अशोक कि जिज्ञासा इस बात में बढ़ गयी कि बाप को बेटे ने गोली क्यो मारी ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसके कारण बाप बेटे के बीच इतनी चौड़ी खाई घृणा की खड़ी हो गयी जिसके लिए बेटे ने बाप को ही गोलियों से भून दिया ।
धीरेंद्र ने बताया कि बेटा गांव की जिस लड़की पर फिदा था एवम् प्रेम करता था उसी पर बाप का भी दिल आ गया यही वजह बाप बेटे में नफरत के इस स्तर तक बढ़ने और अंजाम का कारण थी।
अशोक का मन इस बात पर विश्वासः नही कर सका क्योकि वह स्वयं प्रकांड ज्योतिष विज्ञान एव भारतीय ज्योतिष एव पश्चात मान्यता के ज्यातिष विज्ञान का अंतराष्ट्रीय स्तर का जानकार स्वीकार्य ज्योतिष विद है अतः उंसे इस बात का भलीभाँति ज्ञात था कि एक ज्योतिषी पण्डित सुमंत उपाध्याय की स्थिति में क्या सोच सकता है एव क्या कर सकता है।
अतः अशोक को कोई जल्दीबाजी नही थी उसने सच्चाई की
जानकारी के लिए जिद ठान लिया और अपने नियमित कार्यो के साथ इस संदर्भ में साक्ष्य एव सत्यता जो कही भी मिल जाता जानने की कोशिश करता अशोक कि जानकारी में जो सच्चाई सामने आई वही सच थी पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय जी का प्रिय पुत्र जिसे वह बहुत प्यार करते थे गांव की ही बेहद खूबसूरत लड़की जो विजातीय थी से प्यार करता था हद तक पागल था जब इस बात कि जानकारी पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय को हुई तब उन्होंने उस लड़की को समझाने उसके घर पहुंचे दुर्भाग्य कहे या सौभगय उस समय कोई भी उस लड़की के अलावा उसके घर का परिवार का सदस्य मौजूद नहीं था पण्डित जी ने बिना किसी बात की चिंता किये उंसे बेटी कि तरह समझाना शुरू किया कुछ देर बाद पण्डित जी का प्रिय पुत्र अपनी प्रेमिका से पूर्वनिर्धारित समय पर मिलने जब पहुंचा तो देखा कि उसके पिता अकेले उसकी प्रेमिका से बात कर रहे है।
लड़कपन कोमल हृदय कमजोर भावनाओ ने पुत्र के मन मे पिता के प्रति गलतफहमियो को जन्म दे दिया और वह वहाँ से लौट आया और पूरी रात बैचैन परेशान सो नहीं पाया ब्रह्म मुहुर्त में पण्डित सुमंत उपाध्याय गणना करवाने खेत को चले गए और जब उनका बेटे की आंख खुली और पिता को सामने देखा पिता पर गोली दाग दी ।
अशोक के लिए यक्ष प्रश्न यह था कि आखिर इतने बड़े विद्वान को उनके ही बेटे ने गोली क्यो मेरी क्या इसमें कोई ज्योतिषीय रहस्य है ?
अपनी जानकारी का परीक्षण ज्योतिषीय ग्रंथो के आधार पर करने की कोशिश करने लगा जो सत्य उसकी गणनाओ से प्रमाणित हुये वह बहुत आश्चर्य जनक एव बिल्कुल सत्य थे ।
अशोक की ज्योतिष गणना एव कृष्ण के निष्काम कर्म योग सिंद्धान्त द्वय सत्य सिद्धांत के आधार पर जो सत्य एव संदेह की गुंजाइश से परे है के अनुसार गणना में अशोक को चौकाने वाले प्रमाण इस घटना के परिपेक्ष्य में प्राप्त हुये ।
जो तथ्य प्रणाम के साथ प्रामाणित एवं प्रामाणिक इस घटना में अशोक ने प्राप्त किये उसके अनुसार पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय पूर्व जन्म में राजा महेंद्र वर्मन के राज्य में एक बढ़े जमींदार हुआ करते थे अक्सर राजा महेंद्र वर्मन के साथ ही रहते और उन्हें अपनी सलाह राज्य कार्यो में देते रहते ।
अचानक एक दिन उनके छोटे से जमींदारी कहे या रियासत एक शेर का आतंक बढ़ गया और लोंगो के सहयोग से उंसे पकड़ कर पिजड़े में कैद कर लिया और सप्ताह भर भूखा रखा गया।
सप्ताह बाद शेर बहुत भयंकर दहाड़ मारने लगा लेकिन शेर के खाने के लिये कोई व्यवस्था नही सूझ रही थी उसी समय दौलत सिंह (सुमंत मणि उपाध्याय का पूर्व जन्म का काल्पनिक नाम) की निगाह अपने ही पालतू लंगड़े हिरन पर पड़ी और उन्होंने निश्चय किया कि शेर को भोजन के लिए उसी लँगड़े हिरन को दे दिया जाय दौलत सिंह ने ज्यो ही अपने उस लंगड़े हिरन को पकड़ कर शेर के पिजड़े में डालने का आदेश अपने आदमियों को दिया लंगड़ा हिरन हिरनी को देखता रहा उसके आंखों से आंसू की धारा बह निकली देखते ही देखते लंगड़ा हिरन शेर के पिजड़े में डाल दिया गया और भूखे शेर ने कुछ मिनटों में ही उसका नामों निशान मिटा दिया।
इस दृश्य को देख दौलत सिंह का हृदय दुखी हो गया और शेर को जंगल मे छोड़वा दिया ।
दौलत सिंह को कुछ दिनों बाद कुछ डाकुओं ने मार दिया वही दौलत सिंह जन्मों जन्मों काया काया घूमता पण्डित सुमंत मणि उपाधयाय मानव योनि में पुनः दौलत सिंह के बाद आये और लंगड़ा उनका पालतू हिरन उन्ही के पुत्र के रूप में उन्हें प्राप्त हुआ यही वास्तविकता राजा महेंद्र वर्मन के साथ शुरू गोरखपुर के पिपराइच के आगया में पहुंच कर पुनः एक सच्चाई का गवाह बनी ।
राजा महेंद्र वर्मन के जमाने के दौलत सिंह एव वर्तमान जीवन के पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय के रहन सहन शानो शौकत में कोई अंतर नही था अंतर था तो सिर्फ समय काल का कभी वे राजा महेंद्र वर्मन के खास दौलत सिंह थे तो कभी पण्डित सुमंत मणि उपाध्याय।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश