शाम की चाय पर

आओ कभी मिल बैठते हैं,शाम की चाय पर।
किसी दोस्त की हैलो संग,किसी की हाय पर।
किस्से सुनाते हैं आओ,बचपन और जवानी के,
कुछ बातें हों सपनों की,कुछ किस्से नादानी के।
कभी लास्ट बैंच पर बैठ,मैच देखना मोबाइल पर।
बातें कुछ लड़कियों की,कौन मरती स्टाइल पर।
कभी खाते चाय संग समोसे, कालेज की कैंटीन में।
कभी बंक करने पीरियड,ऐसे ही रूटीन में ।
अब कहां रही वो बातें,दोस्त नहीं करते दिल की बात।
दिखाने को रह गई तरक्कियां, दिखाने को औकात।
सुरिंदर कौर