व्यथा
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कैसी ये व्यथा अजब
हॄदय करता करुण
क्रन्दन प्रतिपल विकल
अंतस्तल कथा निर्गत
सूखे नीड अवलोकित
कर सिहर जाता हिय
उदधि कंज के संग संग
हर्षित हो प्राण प्रिय
अधर उपजे उपालंभ
चित्त कदाचित सा अधीर
अनायास नव आरम्भ
नयन भरे अगाध नीर
निशि के घनघोर तिमिर
हो उठता हॄदय विकल
पीड़ा विस्मृत कर फिर
प्रमुदित नव विहान
“कविता चौहान”
✍🏾स्वरचित एवं मौलिक