वो दर ओ बाम क्यूँ नहीं आता,,
इक दिया आम क्यूँ नहीं आता,
वो दर ओ बाम क्यूँ नहीं आता,,
एक ही शख़्स क्यूँ ज़बाँ पर है,
दूसरा नाम क्यूँ नहीं आता,,
इश्क़ करना बस इश्क़ करना ही,
दूसरा काम क्यूँ नहीं आता,,
जाने क्यूँ कर के दिल धड़कता है,
इसको आराम क्यूँ नहीं आता,,
चाँद के शौक़ में कभी छत पर,
वो खुले आम क्यूँ नहीं आता,,
तुम मुख़ातिब तो मुझ से होते हो,
ख़त मेरे नाम क्यूँ नहीं आता,,
जब मुहब्बत नहीं अदावत है,
तो सरे आम क्यूँ नहीं आता,,
सब्र का ज़हर ही पियेंगे क्या,
सामने जाम क्यूँ नहीं आता,,
– नासिर राव