वाह-वाह क्या दाँत (हास्य कुंडलिया)
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वाह-वाह क्या दाँत (हास्य कुंडलिया)
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गिरते – गिरते गिर गए ,बत्तिस दाँत तमाम
खाने लायक मुँह बचा ,सिर्फ पिलपिले आम
सिर्फ पिलपिले आम ,पोपला मुख जब पाया
बत्तीसी का सेट , एक नकली लगवाया
कहते रवि कविराय ,युवा अब होकर फिरते
देते मधु – मुस्कान , बिजलियाँ बनकर गिरते
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451