वातावरण चितचोर
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** गीतिका **
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देखिए सुरमय हुआ वातावरण चितचोर।
सज गये रक्तिम प्रभा से हर प्रकृति के छोर।
सूर्य की नव रश्मियां यह दे रही संदेश।
जाग जाओ हो गई है अब सुहानी भोर।
छोड़ कर आलस्य सारा तज दिए हैं नीड़।
उड़ रहे पाखी गगन में देखिए हर ओर।
ज्ञान के विज्ञान के युग का चलन है आज।
चल नहीं सकता तमस का अब कहीं भी जोर।
बढ़ चलें संघर्ष पथ पर मत करें परवाह।
सिंधु में चलती रही हैं आंधियां घनघोर।
ढल लिया करता हमेशा वक्त के अनुरूप।
जब समय आता मधुर है नाचता मनमोर।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हि.प्र.)