वाणी से उबल रहा पाणि💪
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वाणी से उबल रहा पाणि👉👈
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पानी उबल रहा वाणी में
दिल में आग वाणी में पानी
चूल्हे उबाल रहा चाय पानी
गम पी पी कर जी रहे ज्ञानी
जन-जन की यही कहानी
चाहत इच्छा की है मनमानी
आहत हो गम से जीते ज्ञानी
उबल रहे चाय और पानी
किसके पास है समय कहां
जो तेरी सुनते कहानी वाणी
निज को अभिमानी महाज्ञानी
समझ ये न बुझते समझे औरों
की सुनते ही नही शांति वाणी
रिपु हुंकार उबाल रहा पाणि
जग जन सुन कहानी वाणी
समय नहीं जो सुनी जानी
चूल्हे पर उबल रहा पानी
कैसे चाय पकेगी जगज्ञानी
मर्म समझो जन अरमानी
तन खड़ा दिल में आग कंधे
अंगार हुंकार भरा है वीर वाणी
अम्बर भरा पड़ा बारूद वारिद
सरहद की सीमा पर फड़क
फुफकार रहा विष भरा सहत्र
अस्त्र शस्त्र वीर वाणी पाणि
वर्फ गड़े जवानों के बम्बू बीच
तम्बू मे उबल रहा चाय व पानी
सर से जब पानी गुजर जाता है
शांति समझौता की रेखा जब
बदला जाता तब खून भरे पाणि
क्रांति भ्रांति रूप लेता वीर वाणी
उफ़ान भरने लगता चाय व पानी
ललकार अंगार उगलने लगता
बर्फ भी वम बर्षा करता ये पाणि
घबरा दुश्मन घुटने टेक बैठ कर
प्राणों की भीख मांगता रहता
कदम कंधे नीचे शिर पर पाणि
पी नहीं पाते फिर से ये भीरू
तम्बू में उबले चाय और पानी
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण