“वट वृक्ष है पिता”
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/3d920313f3f887529b8e15efa54a7cb6_f2dfb44e5536d6e34342ffb77ab3eb7a_600.jpg)
पिता वट वृक्ष हैं जिनके,
शीतल छांव में बच्चे पलते हैं।
पिता वो रिश्तों का दरिया हैं,
जिनमे सारा समंदर समा जाता है।
अपने संतान की खुशियों के लिए,
आसुओ के घूट को पी जाते हैं।
पिता संघर्ष और मुसीबत में हौसला के दीवार हैं,
परेशानियों से लड़ने के तलवार हैं।
पिता जिम्मेदारियों को निभाने के सारथी हैं,
पिता बराबर का हक दिलाने के महारथी हैं।
पिता जमीर हैं, पिता जागीर हैं,
जिसके पास पिता हैं वो बड़ा अमीर हैं।
छोटे छोटे संकट में मुह से माँ निकल आता है,
पर जब पड़ता भारी संकट तो बाप रे निकल आता है।
पिता बाहर से सख्त अंदर से नरम होते है,
पिता के दिल के भी बड़े मरम होते है।
घर जिससे चलता है राशन हैं पिता,
कभी मौन तो कभी भाषण पिता देते हैं।
संतान की खुशी न हो पूरी तो उनकी वो लाचारी,
अपने को बेंच देते हैं पिता हैं ऐसे व्यापारी।
कभी अभिमान तो,कभी स्वाभिमान हैं पिता,
कभी धरती तो,कभी आसमान हैं पिता।
संतान के जीवन के पहला पायदान हैं पिता,
दुनिया मे हमारे पहचान हैं पिता।
विशाल वट वृक्ष हैं पिता,
महान हैं पिता महान हैं पिता।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️