लिप्सा
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लिप्सा कभी खत्म नही होती है,
एक के बाद दूसरी फिर तीसरी ,चौथी,
निरंतर बढ़ती ही जाती है ,
आत्मसम्मान , रिश्तों – संबंधों तक को
दांव पर लगाने से नही चूकती है ,
अपनी पूर्ति के लिए छद्म,
छल – कपट, का सहारा भी लेती है ,
स्वार्थपरक ,संवेदनहीन , धन – पद,
लोलुपतापूर्ण बन जाती ,
मानवीय मूल्यों ,संस्कारों – आदर्शों को
तिलांजली देकर,
परिणति में अधोगति के पथ पर
अग्रसर होती है।