लिपटी परछाइयां
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मेरी रूह संग लिपटी,तेरी यादों की परछाइयां।
रुखसत हुआ जब से तू , रूठी हैं रानाईयां।
कभी तेरे ख्यालों से ही,महक उठते थे चारसु
आज तेरे जाने से ,खामोश है शहनाईयां।
बहुत करीब से मेरे ,उठ कर चला गया कोई
बहुत डस रहीं हैं , अब मुझको ये तन्हाईयां।
चाहते तो नशर कर दे,तेरा नाम सरे महफ़िल
क्या करें मंजूर न थी, मुझको तेरी रुसवाईयां।
कैसे लिखें काग़ज़ पर,अपना हम हाल ए दिल
लिखते लिखते कम पड़ जायेगी ये रोशनाइयां
सुरिंदर कौर