रोटी की ख़ातिर जीना जी
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रोटी की ख़ातिर जीना जी
रोटी के हित ही मरना जी
रोटी कब मिलती है बैठे
सब रात दिवस इक करना जी
भूखे को चाँद लगे रोटी
कुदरत का यूँ भी छलना जी
नींद न आये क्यों भूखे को
जल पी के हाय तड़पना जी
– महावीर उत्तरांचली
रोटी की ख़ातिर जीना जी
रोटी के हित ही मरना जी
रोटी कब मिलती है बैठे
सब रात दिवस इक करना जी
भूखे को चाँद लगे रोटी
कुदरत का यूँ भी छलना जी
नींद न आये क्यों भूखे को
जल पी के हाय तड़पना जी
– महावीर उत्तरांचली