‘रूप बदलते रिश्ते’
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रिश्ते बदल गए समय की रफ़्तार में
संसार डूबा है मोबाइल की धार में।
छूट गई पगडंडियाँ थी जो पाँव तले,
अब पैदल नहीं घूमते हैं सब कार में।
मेल-मिलाप पहले सा होता नहीं,
आनेवाला मेहमान भी भाता नहीं।
बूढ़े खड़े,फैलकर बैठते अब हैं युवा,
बच्चे बड़ों से ज़रा भी शर्माते नहीं।
ननद भी करती नहीं ठिठोली,
देवर अब खेले नहीं है होली।
बाग बिक गए गाँव के सगरे,
कोयल की न सुनाई देती बोली।
अब आता आनंद कहाँ त्यौहार में,
रिश्ते बदल गए समय की रफ़्तार में।
©®
गोदाम्बरी नेगी
स्वरचित एवं मौलिक