स्त्री एक कविता है
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रूप अनेक अनजान राहों मे
जो बार-बार है बदलता ।
चंचल मन मोर- सा चंचल विचार ,
बहती हुई सी सरिता।।
जीवन है वह नाम इसी का,
विचारों का ताना-बाना।
सुलगती दिया सिखा -सी,
फिर भी ममतामई खजाना।।
आचार विचार में सौम्य सुलभ,
न लालच सिर्फ मोहक।
लाज- लज्जा, लालन-पालन ,
कर निडर हो बेखौफ।।
दुख शह खुद करती त्याग,
निछावर सर्वस्व अपना ।
अपनत्व की भावना मे अपने,
उन्नति प्रगति करें देखे सपना।।
सतपाल चौहान।