रूठकर के खुदसे
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रूठकर के खुदसे ही मैं
शांत एकांत जगह कहीं जाकर
ख़्वाबों के सरहाने बैठ जाती हूं
देखकर यूं अकेला मुझको
सब पूछने फिर लगते है
कि सब ठीक तो है ना?
कुछ देर सोचती हूं
और फिर नजरे चुराती हूं
“हां, सब ठीक है”
ये झूठ सबसे मैं…,
ना जाने कितनी बार कहती हूं।
– सुमन मीना (अदिति)