राजयोगमहागीता” ओंकार,अघनाशक,परमआनंदहैंजो( घनाक्षरी, पोस्ट५२- जितेन्द्र कमल आनंद
प्रभु प्रणाम
————- ओंकार, अघनाशक,परम आनंद हैं जो,
क्यों न करें भक्त यशगान आठों याम ही ।
देख – देख प्रभु प्रेम मूर्ति की सौंदर्य राशि ,
करते मधुप रस पान अविराम ही ।
सगुण साकार हैं जो गोविंद मुरारी श्याम ,
मन्मथहारी हैं जो ललित ललाम ही ।
भाग्य के विधाता विभु फलदाता कर्म के जो ,
क्यों न करें ऐसे श्रीकृष्ण को प्रणाम ही ।।
—– जितेंद्रकमलआनंद