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6 Feb 2017 · 1 min read

*** ये मेरा दिल ***

ये मेरा दिल भी कभी लाल हुआ करता था
गुल-ए-गुलशन में गुलफ़ाम हुआ करता था
न जाने कब लगा इसको कायनात का धुआं
धुंधला सा गया इसका प्यारा सा कलेवर
मुझे कब से बहम था ये दिल तो अपना ही है
दुनियांवालों ने इतना मजबूर किया इसको
ये न अपना हो सका न पराये को प्यारा
कालिख पुतती जाती है दिनोदिन इसके मुख
बस मुझे इसी बात का है कई दिनों से दुःख
दिल मेरा हुआ है मेला जैसे किसी ओर का
ना हो इस तरह कि दिल आँखें देख न पाऐं
अंधा तो अंधा होता है मेरे प्यारों मगर ये दिल
देखकर भी आज अनजान बनने जा रहा है
देखो ये कैसा दौर आ रहा है जो जमाने को
जीते-जी अजगर की तरह खा रहा है
इन्सान मर-मर कर ही तो जी पा रहा है
ये मेरा दिल ज़हर के घूंट पीये जा रहा है
ना जाने कब आख़िरी मंजिल आये इसकी
बड़ी बेसब्री से इंतजार किये जा रहा है ।।
? मधुप बैरागी

Language: Hindi
Tag: कविता
197 Views

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