“याद रहे”
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“याद रहे”
कौन याद रखता है
उस अन्धेरे वक्त के दीदारों को,
सुबह होते ही
बुझा देते हैं जलते हुए चिरागों को.
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
“याद रहे”
कौन याद रखता है
उस अन्धेरे वक्त के दीदारों को,
सुबह होते ही
बुझा देते हैं जलते हुए चिरागों को.
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति