मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/81ed5a87e7d0d3f16eaab208522b37be_6f71aadb409699d10bfcc05c879eea54_600.jpg)
मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
किसी के ख्वाबों को आंखों में मरते देखा है।।
जिस तरह फूल खिलते हैं अपनी कलियों से
उस मासूम बेटी का आज घर उजड़ते देखें हैं ।।
मां ने पाला था जिसे फूल बनाकर आंगन का
उस बेटी को बाप के घर दूर निकलते देखा है ।।
अब तो खुश फेमिया होगी की बो तुझे प्यार करे
चिराग़ जल के घरों का उजड़ते देखा है ।।
दफन हो गये सारे वजूद उसके घर में तेरे
मैंने उस मां को तेरे घर पे नाक रगड़ते देखा है ।।
Phool gufran