Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jul 2023 · 4 min read

मेल

चलने के लिए पैर भी काफ़ी रहते है लेकिन मेरी एक गाड़ी उसी तरह पेट्रोल पी रही थी,जिस तरह सरकारें आम इंसान के मेहनत की कमाई को चूस लेती है ,पर एक अंतर था मेरी मोटरसाइकिल पेट्रोल पूरा पीकर रुक जाती है, सरकारें नही रुकती।
बहुत विचार करके, कामों की अधिकता को देखते हुए स्कूटी लेने का विचार बना।
निकल गए जबलपुर शाम ५ बजे की बस से,सीट नंबर १७ खिड़की के पास। जैसे ही बस के अंदर गया मेरी सीट पर एक अंकल पहले से ही बैठे थे, उम्रदराज लग रहे थे सो मैंने उनसे कुछ न कहा,काला शूट और सफेद शर्ट फिर भी मैंने पूछ लिया आप वकील है? पता नही क्यों यह बेतुका सवाल मैने पूछा। मज़े की बात यह है कि उन्होंने कहा हां। बस को निकलने मे समय था, बैठे बैठे चाय पीने का मन हुआ और एक चाय अंकल के लिए भी ले आया। चाय उन्होंने जवानी की तरह पी। चाय के पहले हम दोनो के बीच काफी बात हो चुकी थी, वकालत को लेकर। वकील, न्यायाधीश से लेकर पूरे सामाजिक तंत्र पर बात हो गई। अगर किसी का धंधा पता हो तो बात उसी पर सबसे पहले की जा सकती हैं और मुझे भी उस समय भारतीय न्यायतंत्र कमजोर दिख रहा था। इसी बात के बीच मेरा परिचय और
पेशा वो जान चुके थे।
बस रवाना हुई और वो एक- एक जगह का नाम पूछने लगे,
वकील अंकल का इस सागर शहर से कम रिश्ता था, मैंने भी पीली कोठी,पहलवान बब्बा से लेकर सिविल लाइंस,मकरोनिया सब बताते हुए उनको जबलपुर १८०किमी का बोर्ड भी दिखा दिया जिससे उनको संतुष्टि हो जाए। वो पहली बार इस रोड से जबलपुर जा रहे थे।
लेकिन उनकी जगहों को लेकर उत्सुकता देखने लायक थी।
या फिर वो डरे हुए थे कही गलत दिशा मे बस रवाना तो नही हो गई।
थोड़ा सा मुझ पर भरोसा होते हुए
अचानक से वो बोले मेरे बेंगलुरु में ३ फ्लेट है, जिनकी कीमत करोड़ों मे है, सारे बच्चे वही पर स्थायी निवास करते है,बच्ची एशिया की टॉपर थी अभी एक विदेशी बैंक में काम करती है, दोनों लड़कों की सालाना इनकम ३ करोड़ के आस पास है। कुछ पल के लिए मेरा दिमाग़ मेरे शरीर से अलग सा महसूस हुआ। ये बातें सामान्य नही थी।
अपने दिमाग को शरीर से जोड़ने के लिए मैंने कुछ निजी बातें पूछना शुरू किया,आपकी उम्र क्या है? उन्होंने कहा मैं ८० साल का हो चुका हु। गुणा भाग सही बैठा कर मैने कहा आप तो सन ४३ की पैदाइश है,सामाजिक विज्ञान मे रुचि के कारण ,इतिहास बाजू मे बैठा था फिर क्या आजादी से लेकर आपातकाल और निजीकरण से लेकर स्मार्टसिटी तक कुछ सवाल हुए लेकिन बाजू वाला इतिहास उदासीन।
इसके पीछे कारण अनेक। वकील अंकल संपन्न परिवार से थे,जवानी मौज मस्ती में कटी,वकालत पर गुरु की कृपा रही इस तरीके से उन्होंने बताया।

सफ़र लंबा था, बातें फिर शुरू हुई
आपकी इतनी ज्यादा उम्र हो चुकी है फिर भी आप एक मामले के लिए इतनी भागा दौड़ी कर रहे हैं? वकालत कुछ इसी तरह का पैशा है इस मे अब ना ही आना अच्छा है,जरूरत से ज्यादा खराब हो चुका है इस तरह की सलाह उन्होंने दी।
आप बेंगलुरु गए है क्या? हां कभी कभी चला जाता हूं लेकिन बातें कम हो पाती हैं, अंग्रेजी तो आ जाती है लेकिन कन्नड़ नही आती,मैने कहा आपको कन्नड़ सीखनी चाहिए क्या पता आने वाले समय मे आप हमेशा को वही स्थाई रूप से चले जाए। उन्होंने इस बात को एक कान से लेकर दूसरे कान से निकाल दिया।
पता नही क्यों जानबूझकर उनसे बाते होती ही जा रही थी और वो भी मेरे सही गलत सवालों के अपने अनुभव के साथ संवाद बनाए हुए थे।
बात फिर उनके बच्चों के बच्चो पर आई,तो फिर मैने पूछ लिया क्या छोटे बच्चो को मोबाइल फोन देना ठीक हैं?
थोड़ा सा सोच कर बोले आज कल बिना टेक्नोलॉजी के कुछ हो पा रहा हैं,हम जी ही नही सकते इसके बिना।
अंकल मेरी बात को खुद पर ले गए जबकि सवाल बच्चो पर था।
क्या बच्चे टेक्नोलॉजी से अपने खुद के वजूद को समझ पा रहे है? इस बार अंकल कुछ नही बोले।
रास्ते में बस का प्रवेश जंगल में होता है और काली रात के जंगल की शांति हम दोनो को भी कुछ समय के लिए
शांति -सी दे जाती है।
जबलपुर पास आने वाला था,लेकिन उसके पहले एक मंदिर आया और अंकल ने भगवान से दूर से ही आशीर्वाद ले लिया,मंदिर हिंदू था और अंकल हिंदू नही थे,अब मे अचरज मे पड़ गया लेकिन पूछ ही लिया आप हिंदू है? उन्होंने कहा क्या फर्क पड़ता है सब एक है,मेरे पूरे जीवन मे धर्म के दरवाज़े आस पास रहे,जीवन मे सिवाए मस्ती के कुछ नही किया लेकिन फिर भी एक दृष्टि मेरे ऊपर हमेशा बनी रहीं शायद वह यही है।
ये ज्ञान मेरी समझ से बाहर था।
बस स्टैंड आने से पहले वे बोले,तुम्हारे पास बहुत कुछ है पाने को जितना मैने कमाया है उतना तुम इस सफर के दौरान पा चुके हो।

आज सोचता हूं शायद वह अनुभव था। वकील अंकल आज भी याद आ जाते है।

Language: Hindi
384 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
“ जीवन साथी”
“ जीवन साथी”
DrLakshman Jha Parimal
मेरा कान्हा जो मुझसे जुदा हो गया
मेरा कान्हा जो मुझसे जुदा हो गया
कृष्णकांत गुर्जर
शब्द-वीणा ( समीक्षा)
शब्द-वीणा ( समीक्षा)
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
होने नहीं दूंगा साथी
होने नहीं दूंगा साथी
gurudeenverma198
"खुद को खुली एक किताब कर"
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
इज्जत कितनी देनी है जब ये लिबास तय करता है
इज्जत कितनी देनी है जब ये लिबास तय करता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
फ़र्क़ यह नहीं पड़ता
फ़र्क़ यह नहीं पड़ता
Anand Kumar
बिना रुके रहो, चलते रहो,
बिना रुके रहो, चलते रहो,
Kanchan Alok Malu
अब के मौसम न खिलाएगा फूल
अब के मौसम न खिलाएगा फूल
Shweta Soni
दोयम दर्जे के लोग
दोयम दर्जे के लोग
Sanjay ' शून्य'
कृपाण घनाक्षरी....
कृपाण घनाक्षरी....
डॉ.सीमा अग्रवाल
अपना अपना कर्म
अपना अपना कर्म
Mangilal 713
यारों की आवारगी
यारों की आवारगी
The_dk_poetry
जब होती हैं स्वार्थ की,
जब होती हैं स्वार्थ की,
sushil sarna
*हिम्मत जिंदगी की*
*हिम्मत जिंदगी की*
Naushaba Suriya
सौदा हुआ था उसके होठों पर मुस्कुराहट बनी रहे,
सौदा हुआ था उसके होठों पर मुस्कुराहट बनी रहे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
रुपयों लदा पेड़ जो होता ,
रुपयों लदा पेड़ जो होता ,
Vedha Singh
गौरी सुत नंदन
गौरी सुत नंदन
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
"ये कविता ही है"
Dr. Kishan tandon kranti
3004.*पूर्णिका*
3004.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*पेड़ (पाँच दोहे)*
*पेड़ (पाँच दोहे)*
Ravi Prakash
बृद्ध  हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
बृद्ध हुआ मन आज अभी, पर यौवन का मधुमास न भूला।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
दरक जाती हैं दीवारें  यकीं ग़र हो न रिश्तों में
दरक जाती हैं दीवारें यकीं ग़र हो न रिश्तों में
Mahendra Narayan
आज भी अधूरा है
आज भी अधूरा है
Pratibha Pandey
सुविचार
सुविचार
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
बचपन और पचपन
बचपन और पचपन
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
वो अनुराग अनमोल एहसास
वो अनुराग अनमोल एहसास
Seema gupta,Alwar
*शब्दों मे उलझे लोग* ( अयोध्या ) 21 of 25
*शब्दों मे उलझे लोग* ( अयोध्या ) 21 of 25
Kshma Urmila
■ लेखन मेरे लिए...
■ लेखन मेरे लिए...
*प्रणय प्रभात*
Loading...