मेरे सपने

गीत
मेरे सपने, तेरे सपने
घर पर ही कुर्बान हुए
संतानों ने चढ ली सीढी,
सपने तब संधान हुए
सोचा क्या, पाया फिर हमने
इतनी फुरसत मिली कहां
अंगारों पर चले मुसाफिर
क्या अपने-अरमान हुए
बच्चों ने भी गुल्लक फोड़ी
मां ने गहने बेच दिए
कर्जा कर्जा लदे पिताजी
तब जाकर भगवान हुए।
कुछ बनने की खातिर यूं तो
करते हैं सब, जतन यहां
रखी दिवाली मन के अंदर
बल-बलकर बलिदान हुए।।
सूर्यकांत द्विवेदी