मेरा दुश्मन मेरा मन
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मेरा मन मुझे ही बांध लेता है,
जब भी आगे बढूं पैरों में जंजीर डाल देता है,
समझ नहीं आता किस हथियार से मारूँ इसे,
जब मेरा दुश्मन मेरे ही अंदर रहता है..।।
बड़ा ही कायर कर दिया है इसने मुझको,
नींबू की तरह निचोड़ दिया है इसने मुझको,
अब मैं खुद ही अपने फैसलों से डरने लगा हूँ,
इतना अजनबी कर दिया है इसने मुझको..।।
मेरा दिल अदन के बाग में लगता है,
हिम्मत मुझे कब्रिस्तान खींच लाती है,
मेरे अंदर पता नहीं कैसी रूह रहती है,
जो मुझे हर बार जन्नत से जुहन्नम खींच लाती है..।।
अब इसका इलाज भी मुश्किल है,
मर्ज जिस्म में नहीं रूह के अंदर है,
खुराक लायूँ भी तो कहाँ से लायूँ,
इसका हकीम नीचे नहीं ऊपर है..।।
कभी मेरे बहादुरी के भी किस्से हुआ करते थे,
गली मोहल्लों के मोड़ पर बच्चे सुना करते थे,
याद करता हूँ तो वह पुराना जन्म सा लगता है,
इस जन्म में तो टूटी कब्र कर दिया है इसने मुझको..।।
prAstya…..