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2 Oct 2022 · 1 min read

मुझे लौटा दो वो गुजरा जमाना …

मुझे लौटा दो वो गुजरा जमाना ,
जो था बड़ा ही प्यारा और सुहाना ।

अमन और सुकून से भरकर सदा ,
जिंदगी गाया करती थी तराना ।

मौसम थे खुशनुमा औ दिलकश ,
कुदरत का काम था नियम से चलना ।

जमीर जिनके जिंदा थे शराफत रवां,
औरतें मानती थी लाज को अपना गहना ।

गुनाह नहीं तो गुनहगार भी कैसे होते !
आवाम का बुलंदी पर था दिनों ईमान ।

सियासत दार अपना फर्ज समझते थे ,
देश और समाज वास्ते करते सब कुर्बान।

भले ही इतने संसाधन न थे ऐशो इशरत के ,
मगर सब्र और सबूरी का था तो खजाना ।

औलाद माता पिता को पूजती तहे दिल से ,
माता पिता का फर्ज था एक मयार बनाना ।

माता पिता अपने लिए नहीं देश के लिए ,
संतानोत्पत्ति को समझते थे यज्ञ समाना।

मगर कहां अब वोह सारी बातें वो आदर्श ,
ना वो मौसम और न ही खुशनुमा जीवन ।

वो रसीले ,मनमोहक गीत संगीत का दौर ,
हाय! कोई लौटा दे जन्नत सा रंगीन जमाना ।

कोई बेशक ले ले मुझसे सारी दौलत ,
मगर लौटा सके तो लौटा दे वोह गुजरा जमाना ।

अफसानों में पढ़कर जिसे देखने को दिल मचले,
मेहरबान होकर लौटा दो मुझे सुनहरा जमाना ।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 236 Views
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