मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
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मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
जो होठों पर हँसी है,आँख में भी कुछ नमी रखो
तुम अपने हर तरफ इक झूठ की दुनिया बसाये हो
बनावट में ही जीते हो कि थोड़ी सादगी रखो
मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
जो होठों पर हँसी है,आँख में भी कुछ नमी रखो
तुम अपने हर तरफ इक झूठ की दुनिया बसाये हो
बनावट में ही जीते हो कि थोड़ी सादगी रखो