‘महंगाई की मार’
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‘महंगाई की मार’
बढ़ गई है महंगाई इतनी, जिसका न कोई पार है।
चारों ओर एक ही चर्चा, महंगाई की मार है॥
दिन उगते ही काम पे लगते, दिन डूबे तक करते।
फिर भी गुजर बसर हम अपना, मुश्किल से ही करते॥
अब तो जीना हुआ कठिन, चारों ही तरफ अंधकार है।
बढ़ गई है महंगाई इतनी, जिसका न कोई पार है॥
घर में कभी कमी राशन की, कभी नहीं है कपड़े।
सर्दी में बिन स्वेटर रजाई, रहे ठिठुरते अकड़े॥
कोई नहीं है सुनने वाला, यह कैसी सरकार है।
बढ़ गई है महंगाई इतनी, जिसका न कोई पार है॥
अफ़सर नेता पूंजीपति हैं, या इनके हरकारे।
खेती करने वाले अब तो, है केवल बेचारे॥
‘अंकुर’ अब न होत गुजारा, करते जतन हजार है।
बढ़ गई है महंगाई इतनी, जिसका न कोई पार है॥
– निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
जैतपुर, जिला छतरपुर मध्यप्रदेश
मोबाइल नं. – 9752606136