मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार (कुंडलिया)
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/1191d87b2c9c23550c22d289170abd9e_64833019f122ee41bda288819b445538_600.jpg)
मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार (कुंडलिया)
———————————————–
मरने में अचरज कहाँ ,जीने में आभार
दया रोज प्रभु कर रहे ,धन्यवाद सौ बार
धन्यवाद सौ बार , प्रात की स्वर्णिम रेखा
देखी घिरती शाम, चंद्रमा निशि का देखा
कहते रवि कविराय ,आयु दो पूरी करने
प्रभु हों जब सौ साल ,हर्ष से जाएँ मरने
—————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451