*मन के धागे बुने तो नहीं है*
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खोयी और उदास हूँ,
मोती आँखों के गिरे कही,
उनको किसी ने चुने नहीं,
सूख गये धरा में अब,
दर्द के निशान पड़े वही।
ना मोती सुशोभित,
ना पुष्प से गूँथे ,
ना रंगों में डुबोया ,
ना प्रेम प्रीत से बांँधा है,
धागा बंधन बन आया है।
खुशबू हृदय की फैले कैसे ?
मन मयूर चहके ,कैसे?
श्वेत पवित्र ना दिखे अब ये,
मेरे मन के धागे ,
तुमने बुने तो नहीं है।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर।