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28 Jan 2024 · 1 min read

बाल कविता: मोर

बाल कविता: मोर
**************
जंगल जंगल रहता हूँ,
केका केका करता हूँ,
लोग बोलते मोर मुझको,
राष्ट्रीय पक्षी कहलाता हूँ।
जंगल जंगल रहता हूँ…….

जब नाचता लगता सुंदर,
हीरे जड़े पंखों के अंदर,
इंद्रधनुष सा सौन्दर्य मेरा,
सिर पर ताज रखता हूँ।
जंगल जंगल रहता हूँ…….

काले बादल जब भी आते,
मुझको हैं वे बड़े लुभाते,
सावन बरसे भादो बरसे,
पीकर प्यास बुझाता हूँ।
जंगल जंगल रहता हूँ…….

बड़े कीमती मेरे पंख,
पवित्र होता जितना शंख,
घर मे रखते बच्चे बूढ़े,
सबके मन को भाता हूँ।
जंगल जंगल रहता हूँ…….

*********📚*********
स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन

5 Likes · 6 Comments · 317 Views
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