बाल कविता: नदी
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बाल कविता: नदी
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दूर देश से आती हूँ,
शीतल जल मैं लाती हूँ,
जीव- जन्तु पानी पीते,
सबकी प्यास बुझाती हूँ।
चलती हूँ मैं लहराकर,
आँचल अपना फैलाकर,
मैदान छोटे पड़ जाते,
जब रुद्र रूप दिखाती हूँ।
ऊंचे हिम से आती उतर,
घने जंगल से जाती गुजर,
कंकड़ पत्थर लेकर साथ,
आगे बढ़ती जाती हूँ।
शहर बसते मेरे किनारे,
व्यापार फलते मेरे सहारे,
चलते नौका और जहाज़,
सागर में मिल जाती हूँ।
गंगा यमुना रावी मेरे नाम,
सदा बहते रहना मेरा काम,
धरती को मैं शीतल रखती,
नदी- सरिता कहलाती हूँ।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन