मारे ऊँची धाँक,कहे मैं पंडित ऊँँचा

ऊँचा मुँह कर बोलते, गुटखा खा श्रीमान।
गाल छिले, फिर भी फँसे, बहुत बुरा अभिमान ।।
बहुत बुरा अभिमान ज्ञान की त्यागी बातें।
निज मन के बस हुए,खा रहे दुख की लातें।।
कह “नायक” कविराय विश्व के कर में कूँचा।।
मारे ऊँची धाँक, कहे मै पंडित ऊँँचा।।
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*उक्त कुंडलिया को”जागा हिंदुस्तान चाहिए”काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।पेज संख्या ७३
*जागा हिंदुस्तान चाहिए काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
गुटखा= कटी सुपारी,कत्था,तम्बाकू एवं चूना का मिश्रण जो पैक किया हुआ बाजार में मिलता है|,
(एक नशीला मिश्रण)