****प्रेम सागर****
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प्रेम सागर ये अंनत गहरा
कलकल प्रवाहित सा ठहरा
प्रेम बयार स्वच्छंद न्यारी
सुंदर पुष्प की अनुपम क्यारी।
शीतल सुवास उपवन महका
शशि निशा के आगोश बहका
गुपचुप बतिया करते सितारे
नभ के आँगन में बिछते सारे।
स्वप्निल नयन लेते हिलोरे
सुमन अलंकृत अनेक भौरें
अधर गुपचुप से मुस्काये
कपोल गुलाबी रंगत पाये।
नेह,बंधन संग नवीन प्रत्याशा
खोजे हिय मधुर सी दिलासा
करते नयन इक ही प्रतीक्षा
धवल उज्जवल सा इक शीशा।
स्वर्णिम आँचल तारों सजा
नव उल्लास अन्तस्थल बसा
बेबस मन देखे इक आशा
अनचाही अनाम अभिलाषा।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक